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जल की बूंद-बूंद के लिए तरसता जलसेन बांध

















हिण्डौन सिटी। लगभग डेढ़ लाख की आबादी वाले इस शहर को जल के रूप में सदियों से जीवन देते रहे प्रमुख परम्परागत जलस्रोत 'जलसेन बांध' के खुद जीवन पर ही संकट के बादल मंडरा रहे हैं। सरकारी महकमों की अनदेखी, जागरूक वाशिंदों कीउदासीनता और अतिक्रमणकारियों की नापाक हरकतों के चलते इस बड़े बांध काअस्तित्व खात्मे के कगार पर है।
शहर से सटे और 93.24 हैक्टेयर क्षेत्रफल में फैले इस बांध का निर्माण सरकार ने नहीं बल्कि लगभग डेढ़ सदी पहले जयपुर राजघराने के दूरदर्शी शासकों ने कराया था। शहर के इंसानों और मवेशियों की प्यास बुझाने के साथ-साथ भू-जल स्तर को ऊंचा बनाए रखने के मकसद से बनाए गए इस बांध में लबालब जल देखकर ही छठे दशक में तत्कालीन नगर सुधार न्यास ने जलसेन को पर्यटन स्थल बनाने की योजना बनाई थी। मगर नौका विहार योजना को अमलीजामा के पंख लगाने से पूर्व ही न्यास काइंतकाल हो गया। राज्य सरकार ने अपने तुगलकी आदेश द्वारा हिण्डौन जैसे पिछडे़ नगर को विकास की उडान दे रहे नगर सुधार न्यास का अचानक खात्मा कर उसका नगर पालिका में विलय कर दिया। सरकार का आदेश इस शहर के लिए आज अभिशाप बना हुआ है। 
पचास साल पहले या यूं कहें कि पेयजल योजना के शहर में पांव पड़ने तक यहां की आधी से ज्यादा आबादी न सिर्फ़ इसी बांध की पाल के सहारे बने दर्जनों कुओं से पानी पीती थी बल्कि नहाने और कपड़े धोने का काम भी इसी बांध के मनोरम घाटों पर किया जाता था। उस वक्त बांध की पाल पर लगे बड़े-बड़े दरख्तों से स्वतः स्फूर्त मनभावन हरियाली और जलसेन में हिलोरें मारता जल देशी और विदेशी पक्षियों को प्रवास के लिए अपनी ओर आकर्षित करते थे। नई पीढ़ी को पता तक नहीं कि बुजुर्ग नर और नारी तैरना इसी बांध में सीखे थे। उस वक्त जल से लबालब भरा रहने वाला यह बांध तैराकी सीखने का प्रमुख केन्द्र था। 
इस बांध के बंधने से पहले दक्षिण-पूर्व की पहाड़ियों से बहकर आने वाला वर्षा-जल पांच नालों के जरिए नदी का रूप धारण कर मौजूदा गंदे नाले गुजरता हुआ जग्गर नदी में मिल जाता था। अब भी ये पांच नाले जलसेन बांध के प्यासे हलक को तर करने का एकमात्र साधन हैं लेकिन लगभग आठ किलोमीटर परिधि वाले जलसंग्रहण क्षेत्र में अनाधिकृत रूप से आ बसी ढ़ाणियों और उनमें बसे लोगों के साथ-साथ वर्षों से बांध के पेटे की भूमि में कब्जा जमाए बैठे काश्त के लालची लठैतों ने जलसेन को जल से लबालब करने वाले पांचों प्रमुख नालों को पड़यंत्र पूर्वक इस बांध से विमुख कर दिया। नतीजतन बीते कई दशक से यह बांध सूखा पड़ा है। बांध के पेटे में फफोलों की मानिंद उचलतीं पपडियां और बिबाई की भांति दिन-पर-दिन चौड़ी होतीं तरेलें इस जिंदा बांध की दुर्दशा और अकाल मौत मरने की सबसे बड़ी गवाह हैं। हालात इतने गम्भीर हैं कि जलसेन बांध के जलप्लावित रहने के दौरान पाल के सहारे बने जिन कुओं में जल छलकता था और पानी खींचने के लिए रस्सी की भी जरूरत नहीं पड़ती थी, उनमें से अधिकांश कुएं या तो सूख चुके हैं या फिर खिसकता जल रसातल में जा पहुंचा है। नर-नारियों की चहलकदमी से दिनभर आबाद रहने वाले अधिकांश घाट जर्जरता की पीड़ा भोगने के बाद अब सूने पड़े हैं। अब इन घाटों पर सिर्फ़ सूअर, कुत्तों और आवारा मवेशी ही यदाकदा घूमती दिखाई पड़ती है। 

सौ मामाओं का भांजा
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कभी चहुंओर आच्छादित हरियाली और जल की हिलोरों पर इतराने और इठलाने वाला जलसेन बांध आज अपने अस्तित्व की अंतिम लडाई लड रहा है। सरकारी अनदेखी के चलते उसकी स्थिति सौ मामाओं के भांजे जैसी हो गई है। सरकारी रिकॉर्ड गवाह है कि वर्तमान में इसका कोई धणी-धोरी नहीं है। किसी समय नगर पालिका की मिल्कियत में रहा यह बांध कालांतर में फुटबॉल बना दिया गया। नगर सुधार न्यास के खात्मे के बाद इसे सिंचाई विभाग की गोदी में डाल तो दिया लेकिन इस महकमे ने जलसेन को कभी भी अपना बेटा समझ कर नहीं दुलारा। सौतेला बर्ताव करने की वजह स्पष्ट है। दरअसल यह बांध सिंचाई महकमे की कोख से पैदा ही नहीं हुआ। इसेतो डेढ़ सदी पहले जयपुर राजघराने ने जन्म दिया था। भू-जल स्तर ऊंचा बनाएरखने के मकसद से बनाए गए इस बांध से सिंचाई नहीं होने के कारण ही इस बांधके रखरखाव में सिंचाई महकमे की रुचि नहीं रही। इस महकमे की अनदेखी का हीनतीजा है कि इसके पेटे की भूमि के साथ-साथ जलसंग्रहण क्षेत्र भी अवैध निर्माणों और अतिक्रमणों के शिकंजे में जकड़ चुका है। 
बीसवीं सदी के आरम्भ में सरकार ने इस बांध को सिंचाई महकमे से छीनकर पंचायत समिति की गोदी में ले जा पटका। मगर वहां भी इसने उपेक्षा के खूब दंश झेले। शहरी क्षेत्र में होने के कारण पंचायत समिति ने कभी भी इस अभागे को अपना नहींसमझा। जलसेन बचाओ समिति के बैनर तले लम्बी लडाई लड़ते रहे हिण्डौन के जागरूक वाशिंदों की पुरजोर मांग के बावजूद सरकार आज तक तय नहीं कर पाई है कि अपने बजूद की लडाई लड रहा जलसेन बांध आखिर किस विभाग के अधीन है

सड़क बनी गलफांस
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कभी दक्षिण-पूर्व में स्थित पहाडियों से निकलने वाला बरसात का पानी पांच नालों के जरिए इस बांध में पहुंचता था। सरकारी अनदेखी और इंसानी छेड़छाड़ ने धीरे-धीरे जलआवक के इन प्रमुख स्त्रोतों को जलसेन से विमुख कर दिया। नतीजतन आज यह बांध सूखा पड़ा है। पत्थर और स्लेट व्यवसाय में देश ही नहीं, विदेश में भी डंका बजाने वाले इस शहर में जलसेन बांध के लबालब रहते कभी भी पानी की कमी महसूस नहीं की गई लेकिन आज हालात इतने दयनीय हैं कि इसी शहर में पेयजल योजना पर 80 करोड़ की धनराशि खपाने के बावजूद कई वार्डों में टैंकरों से जलापूर्ति हो रही है।
जलसेन के बेटे कहे जाने वाले तीन नाले तो कई पहले ही इंसान के खूनी पंजों के प्रहार से काल के मुंह में समा गए। कुछ एनीकटों के निर्माण से चल बसे तो कुछ को सड़कों के नीचे दबाकर मार दिया गया। डेढ़ दशक पहने तक दो नाले जिंदा थे। एक तेली की पंसेरी की पहाडियों वाला और दूसरा खेड़लियान का पुरा की पहाड़ियों से आने वाला सपाट वाला नाला। सपाट वाला नाला ही इस बांध का प्रमुख जलस्त्रोत था लेकिन उसे भी वर्ष 2012 में सरकार की कुमंशा का ग्रहण लग गया। यह जानते हुए भी कि 'सरकार बनाम् अब्दुल रहमान' के बहु चर्चित प्रकरण में राजस्थान हाईकोर्ट नेजलस्त्रोतों के सरंक्षण के लिए कड़े निर्देश दिए हैं, पीडब्ल्यूडी महकमे ने क्षेत्रीय विधायक की अनुशंसा पर न सिर्फ़ जलसेन बांध के पेटे की भूमि में बल्कि सपाट वाले प्रमुख नाले को सड़क तले रौंद दिया। यही सड़क आज जलसेन बांध के लिए गलफांस साबित हो रही है। हाईकोर्ट ने अब्दुल रहमान वाले मामले में स्पष्ट कहा था कि बांध,तालाब, नदी एवं नालों के मामले में हरसूरत में वर्ष 1947 से पूर्व की स्थिति बहाल रहेगी। यदि किसी भी व्यक्ति ने इनमें किसी भी प्रकार का निर्माण कर लिया है तो वह अनाधिकृत माना जाएगा।

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